क्यों बेहद खास होती है माँ कालरात्रि की पूजा ।
नवरात्री
के सातवें दिन मां दुर्गा के
कालरात्रि रूप की पूजा की जाती
है ये काल का नाश करने वाली
हैं इसलिए कालरात्रि कहलाती
हैं। नवरात्रि के सातवें दिन
इनकी पूजा और अर्चना की जाती
है। कहा जाता है, इस
दिन साधक को अपना चित्त भानु
चक्र (मध्य
ललाट) में
स्थिर कर साधना करनी चाहिए।
मां कालरात्रि की साधना का
संबंध शनि ग्रह से है। कालपुरूष
सिद्धांत के अनुसार कुण्डली
में शनि ग्रह का संबंध दशम और
एकादश भाव से होता है अतः मां
कालरात्रि की साधना का संबंध
करियर, कर्म,
प्रोफैशन,
पितृ,
पिता,
आय, लाभ,
नौकरी,
पेशे से है।
जिन व्यक्तियों कि कुण्डली
में शनि ग्रह नीच, अथवा
शनि राहु से युति कर पितृ दोष
बना रहा है अथवा शनि मेष राशि
में आकार नीच एवं पीड़ित है
उन्हें सर्वश्रेष्ठ फल देती
है मां कालरात्रि की साधना।
देवी कालरात्रि की उपासना
करने से ब्रह्मांड की सारी
सिद्धियों के दरवाजे खुलने
लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां
उनके नाम के उच्चारण से ही
भयभीत होकर दूर भागने लगती
हैं इसलिए दानव, दैत्य,
राक्षस और
भूत-प्रेत
उनके स्मरण से ही भाग जाते
हैं। यह ग्रह बाधाओं को भी दूर
करती हैं और अग्नि, जल,
जंतु,
शत्रु और रात्रि
भय दूर हो जाते हैं। इनकी कृपा
से भक्त हर तरह के भय से मुक्त
हो जाता है। सप्तमी पूजा के
दिन तंत्र साधना करने वाले
साधक मध्य रात्रि में देवी
की तांत्रिक विधि से पूजा करते
हैं। इनका ध्यान इस प्रकार
है
वामपादोल्लसल्लोह,
लताकंटकभूषणा
वर्धनमूर्धध्वजा
कृष्णा, कालरात्रिभयंकरी'
मां
कालरात्रि कि साधना से व्यक्ति
को आलस्य से छुटकारा मिलता
है, भक्त
का कर्म क्षेत्र मज़बूत होता
है, पद्दोन्नति
की प्राप्ति होती है, आय
स्रोत अच्छे होते हैं,
लाभ क्षेत्र
मज़बूत होता है। इनके पूजन से
शत्रुओं का संहार होता हैं।
जिन व्यक्ति की आजीविका का
संबंध कंस्ट्रक्शन,
मकैनिकल,
इंजीनियरिंग,
हार्डवेयर
अथवा पशुपालन से हो उन्हें
सर्वश्रेष्ठ फल देती है मां
कालरात्रि की साधना ।संसार
में कालों का नाश करने वाली
देवी ‘कालरात्री’ ही है.
कहते हैं इनकी
पूजा करने से सभी दु:ख,
तकलीफ दूर हो
जाती है. दुश्मनों
का नाश करती है तथा मनोवांछित
फल देती हैं।
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