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जानिए नव देवियों में मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप व महत्व ।

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नवरात्र के दूसरे दिन देवी के ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा की जाती है।भगवती की नौ शक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। तप व संयम का आचरण करने वाली भगवती को ही ब्रह्मचारिणी कहा गया। देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप ज्योति से परिपूर्ण व आभामय है। माता के दाहिने हाथ में जप की माला व बाएं हाथ में कमंडल है। देवी के इस स्वरूप की पूजा और साधना से कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है। मां ब्रह्मचारिणी की उपासना करने का मंत्र इस प्रकार है -    “   या देवी सर्वभू‍तेषु ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।   नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम :’’ ।।   इसका अर्थ है , ' हे मां ! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे , आपको मेरा बार - बार नमस्कार करता हूँ  मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूं। माता का आशीर्वाद पाने के लिए नवरात्रि के दूसरे दिन माता ब्रम्चारिणी  के स्वरूप का  पूजन , ध्यान , जप आदि किया जाता है | और माता अपने  भक्तों पर सादा अपनी कृपा बनाये  रखती है | किसी समस्या या जानकारी के लिए आप विश्व विख्यात ज्योतिष श...

कब और कैसे करें घट स्थापना तथा पौराणिक महत्व।

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' कलशस्य मुखे विष्णु कंठे रुद्र समाश्रिताः मूलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृताः। कुक्षौतु सागरा सर्वे सप्तद्विपा वसुंधरा , ऋग्वेदो यजुर्वेदो सामगानां अथर्वणाः अङेश्च सहितासर्वे कलशन्तु समाश्रिताः। ' भारतीय धर्म ग्रंथो के अनुसार कलश को सुख - समृद्धि , वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। धारणा है की कलश के मुख में विष्णुजी का निवास , कंठ में रुद्र तथा मूल में ब्रह्मा स्थित होती हैं। साथ ही ये भी मान्ययता है कि कलश के मध्य में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं। इसलिए नवरात्र के शुभ दिनों में घटस्था पना की जाती है। कलश का पात्र जलभरा होता है। जो जीवन की उपलब्धियों का उद्भव आम्र पल्लव , नागवल्ली द्वारा दिखाई पड़ता है। जटाओं से युक्त ऊँचा नारियल ही मंदराचल है तथा यजमान द्वारा कलश की ग्रीवा ( कंठ ) में बाँधा कच्चा सूत्र ही वासुकी है। यजमान और पुरोहित दोनों ही मंथनकर्ता हैं। पूजा के समय प्रायः उच्चारण किया जाने वाला मंत्र स्वयं स्पष्ट। सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक चैत्र नवरात्रि इस बार 18 मार्च से शुरू होकर 25 मार्च तक चलेंगी। घटस्थापना चैत्र शुक्ल प्रतिपद...