Posts

Showing posts from March, 2018

जानिए कब और कैसे बनता है जन्मकुंडली में नीचभंग राजयोग।

Image
ज्योतिष शास्त्र में ' नीचभंग राजयोग ' को अत्यंत शुभ माना गया है। जिस जातक की जन्मपत्रिका में ' नीचभंग राजयोग ' होता है उसे अपने जीवन में धन , पद , प्रतिष्ठा , स्त्री , पुत्र , आरोग्य आदि का सुख प्राप्त होता है। आइए जानते हैं कि जन्मपत्रिका में ' नीचभंग राजयोग ' का सृजन कैसे होता है ? भारतीय वैदिक ज्योतिषशास्त्र में नीच भंग राजयोग से सम्बंधित नियम का निर्धारण किया गया है जिसके अनुसार किन किन परिस्थितियों में नीच के ग्रह भी शुभ फल प्रदान करते है।प्रत्येक जन्मकुंडली में ग्रह किसी न किसी राशि में बैठा होता है । राशि तथा राशि के स्वामी के आधार पर ग्रह की उच्च , नीच , मित्र क्षेत्री , शत्रु क्षेत्री इत्यादि का निर्धारण किया जाता है । उदहारण स्वरूप वृहस्पति कर्क राशि में उच्च का होता है तो मकर राशि में नीच का होता है सामान्यतः जो ग्रह जिस राशि में उच्च का होता है उससे सातवे स्थान में नीच का होता है इसके विपरीत यथा मंगल ग्रह कर्क राशि में नीच का होता है तो उससे सातवां स्थान मकर राशि का होता है अतः मंगल मकर में उच्च का होगा । इसी प्रकार अन्य ग्रह भी अपने नीच स्थ

जानिए क्यों मनायी जाती है महावीर जयंती ।

Image
https://www.facebook.com/acharyainduprakashofficial/ पूरे भारत वर्ष मे महावीर जयंती जैन समाज द्वारा भगवान महावीर के जन्म उत्सव के रूप मे मनाई जाती है . जैन समाज द्वारा मनाए जाने वाले इस त्योहार को महावीर जयंती के साथ साथ महावीर जन्म कल्याणक नाम से भी जानते है। महावीर जयंती हर वर्ष चैत्र माह के 13 वे दिन मनाई जाती है जो अंग्रेजी महीनो के हिसाब से मार्च या अप्रैल मे आती है . इस दिन हर तरह के जैन दिगम्बर , श्वेताम्बर आदि एक साथ मिलकर इस उत्सव को मनाते है . भगवान महावीर के जन्म उत्सव के रूप में मनाए जाने वाले इस त्योहार मे पूरे भारत मे अवकाश रहता है। जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान महावीर का जीवन उनके जन्म के ढाई हजार साल भी उनके लाखों अनुयायियों के साथ ही पूरी दुनिया को अहिंसा का पाठ पढ़ा रहा है। भगवान महावीर जैन धर्म में वर्तमान अवसर्पिणी काल के चौंबीसवें ( २४वें ) अंतिम तीर्थंकर थे । भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार साल पहले ( ईसा से 599 वर्ष पूर्व ), वैशाली के गणतंत्र राज्य क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था। महावीर को ' वर्धमान ', वीर ', ' अतिवीर ' और ' सन्मति &#

जानिए जन्मकुंडली के साथ नवमांश कुंडली भी कैसे बताती है व्यक्ति के जीवन काल को ।

Image
भारतीय अखंड ज्योतिष शास्त्र में जन्मकुंडली केवल लग्न कुंडली या चन्द्र कुंडली तक सीमित नहीं है | बल्कि षोडशवर्ग जिसे कि अधिकतर नजर अंदाज कर दिया जाता है जो की जन्मकुंडली और फलादेश करने के बहुमहत्वपूर्ण अंग हैं | यदि एक कुंडली को गहराई से देखा जाए तो एक दिन और एक महीना भी काफी नहीं है | अगर कोई ग्रह जन्म कुण्डली में नीच का हो एवं नवांश कुण्डली में उच्च को हो तो वह शुभ फल प्रदान करता है जो नवांश कुण्डली के महत्त्व को प्रदर्शित करता है। नवांश कुण्डली में नवग्रहो सूर्य , चन्द्र , मंगल , बुध , बृहस्पति , शुक्र , शनि के वर्गोत्तम होने पर व्यक्ति क्रमश : प्रतिष्ठावान , अच्छी स्मरण शक्ति , उत्त्साही , अत्यंत बुद्धिमान , धार्मिक एवं ज्ञानी , सौन्दर्यवान एवं स्वस्थ और लापरवाह होता है। भारतीय ज्योतिष में नवमांश कुण्डली अत्यंत महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। नवमांश कुण्डली को लग्न कुण्डली के बाद सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। लग्न कुण्डली शरीर को एवं नवमांश कुण्डली आत्मा को निरुपित करती है। केवल जन्म कुण्डली से फलादेश करने पर फलादेश समान्यत सही नहीं आता। पराशर संहिता के अनुसार जिस व्यक्ति की जन्म

जन्म पत्रिका के द्वादश भावो में राहु ग्रह का प्रभाव।

Image
भारतीय ज्योतिष के अनुसार राहु ग्रह को छाया ग्रह माना जाता है। राहु ग्रह व्यक्ति को अनुभ ही बल्कि व्यक्ति को शुभ फल से प्रभावित भी करता है आओ जानते हैं राहु के द्वादश भावों में शुभ - अशुभ फल को । - प्रथम भाव : दुष्ट बुद्धि , दुष्ट स्वभाव , सम्बन्धियों को ठगने वाला , मस्तक का रोगी , विवाद में विजय व रोगी होता हैं। द्वितीय भाव : कठोर कर्मी , धन नाशक , दरिद्र , भ्रमणशीला होता हैं। तृतीय भाव : शत्रुओं के ऐश्वर्य को नष्ट करने वाला , लोक में यशस्वी , कल्याण व ऐश्वर्य पाने वाला , सुख व विशाल को पाने वाला , भाईयों की मृत्यु करने वाला , पशु नाशक , दरिद्र , पराक्रमी होता हैं। चतुर्थ भाव : दुखी , पुत्र - मित्र सुख रहित , निरतंर भ्रमणशील व उदर रोगी बनाता हैं। पंचम भाव : सुखहीन , मित्रहीन , उदर - शुल रोगी , विलास में पीड़ा , भ्रमित व उदर रोगी बनाता हैं। षष्ठ भाव : शत्रु बल नाशक , द्रव्य लाभ पाने वाला , कमर में दर्द , म्लेच्छो से मित्रता व बलवान होता हेै। सप्तम भाव : स्त्री विरोधी , स्त्री नाशक , प्रचण्ड क्रोधी , स्त्री से विवाद करने वाला , रोगी स्त्री प्राप्त करता हैं

नवदुर्गा का नौवां स्वरूप मां सिद्धिदात्री।

Image
माँ दुर्गा जी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र - पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि - विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है। सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि | सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी || मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा , महिमा , गरिमा , लघिमा , प्राप्ति , प्राकाम्य , ईशित्व और वशित्व - ये आठ सिद्धियाँ होती हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के श्रीकृष्ण जन्म खंड में यह संख्या अठारह बताई गई है। इनके नाम इस प्रकार हैं - माँ सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं। देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वे लोक में ‘अर्द्धनारीश्वर’ नाम से प्रसिद्ध हुए। माँ सिद्धिदात्री चा

अन्नपूर्णा स्वरूप महागौरी का क्यों किया जाता अष्टमी को विधि-विधान से पूजन ।

Image
हिन्दुओं के पवित्र पर्व नवरात्रि में आठवें दिन नवदुर्गा के महागौरी स्वरूप का पूजन किया जाता है। माता महागौरी राहु ग्रह पर अपना आधिपत्य रखती हैं। महागौरी शब्द का अर्थ है महान देवी गौरी। श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः। महागौरी शुभं दघान्महादेवप्रमोददा।। नवरात्र के आठवें दिन महागौरी की पूजा - अर्चना और स्थापना की जाती है। उत्पत्ति के समय महागौरी आठ वर्ष की आयु की थीं इसी कारण नवरात्र के आठवें दिन महागौरी की पूजा की जाती है। नवरात्र के आठवें दिन महागौरी का पूजन करने से सुख और शांति की प्राप्ति होती है। अपने भक्तों के लिए यह अन्नपूर्णा स्वरूप है। इसीलिए भक्त अष्टमी के दिन कन्याओं का पूजन और सम्मान करते हुए महागौरी की कृपा प्राप्त करते हैं। यह धन वैभव और सुख - शांति की अधिष्ठात्री देवी है। महागौरी के तेज से संपूर्ण विश्व प्रकाशमय है।इनकी शक्ति अमोघ फलदायिनी है। दुर्गा सप्तशती के अनुसार देवी महागौरी के अंश से कौशिकी का जन्म हुआ जिसने शुंभ - निशुंभ का अंत किया। महागौरी ही महादेव की पत्नी शिवा व शांभवी हैं। महागौरी की साधना का संबंध छाया ग्रह राहू से है। कालपुर

क्यों बेहद खास होती है माँ कालरात्रि की पूजा ।

Image
नवरात्री के सातवें दिन मां दुर्गा के कालरात्रि रूप की पूजा की जाती है ये काल का नाश करने वाली हैं इसलिए कालरात्रि कहलाती हैं। नवरात्रि के सातवें दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है। कहा जाता है , इस दिन साधक को अपना चित्त भानु चक्र ( मध्य ललाट ) में स्थिर कर साधना करनी चाहिए। मां कालरात्रि की साधना का संबंध शनि ग्रह से है। कालपुरूष सिद्धांत के अनुसार कुण्डली में शनि ग्रह का संबंध दशम और एकादश भाव से होता है अतः मां कालरात्रि की साधना का संबंध करियर , कर्म , प्रोफैशन , पितृ , पिता , आय , लाभ , नौकरी , पेशे से है। जिन व्यक्तियों कि कुण्डली में शनि ग्रह नीच , अथवा शनि राहु से युति कर पितृ दोष बना रहा है अथवा शनि मेष राशि में आकार नीच एवं पीड़ित है उन्हें सर्वश्रेष्ठ फल देती है मां कालरात्रि की साधना। देवी कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं इसलिए दानव , दैत्य , राक्षस और भूत - प्रेत उनके स्मरण से ही भाग जाते हैं। यह ग्रह बाधाओं को भी दूर करती हैं और अग्नि , जल ,

माता भगवती दुर्गा का छठा अवतार हैं माँ कात्यायनी |

Image
नवरात्रि की धूम हर तरफ है | घर हो या मंदिर , हर जगह माँ दुर्गा के अलग - अलग स्वरूपों की उपासना हो रही है | भक्तों में मातारानी को प्रसन्न करने की होड़ है | ऐसे में यह आवश्यक है नवरात्रि के हर दिन की अलग - अलग महिमा के बारे में जान लिया जाए | नवरात्रि के छठे दिन देवी के छठे स्वरूप माँ कात्यायनी की पूजा - अर्चना का विधान है। इसी तिथि में देवी ने जन्म लिया था और महर्षि ने इनकी पूजा की थी | माँ के इस रूप के प्रकट होने की बड़ी ही अद्भुत कथा है | कथा के अनुसार विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी माँ भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। माँ भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। ऋषि कात्यायन के घर में जन्म लेने के कारण ही इनका नाम कात्यायनी पड़ा | सांसारिक स्वरूप में माँ कात्यायनी सिंह पर आरूढ़ हैं । दिव्य रूपा कात्यायनी देवी का रूप सोने के समान चमकीला है। सुसज्जित आभा मंडल से युक्त देवी माँ का स्वरूप मन मोहक है। इनके बाँए हाथ में कमल व तलवार और दाहिने हाथ में स्वस्तिक और आशीर्वाद की मुद्रा अंकि