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व्यक्ति को कैसे प्रभावित करता है कुंडली में बना कालसर्प दोष।

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वर्तमान समय में अक्सर देखा जाय तो   किसी भी ज्योतिषीय के द्वारा बताएगयेकुंडली में बने कालसर्प दोष का नाम सुनते ही व्यक्ति घबरा जाता है। कुंडली में कालसर्प दोष का पाया जाना कोई बहुत बड़ी घटना नहीं मानी जाती है। देखा जाता है कि 70 प्रतिशत लोगों की कुंडली में यह दोष होता है। आपको जानकार हैरानी होगी कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री जी की कुंडली में भी यह दोष था और तो और क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर की कुंडली भी कालसर्प दोष से प्रभावित थी लेकिन फिर भी दोनों व्यक्ति अपने-अपने क्षेत्रों में नाम और मान-सम्मान प्राप्त करने में सफल रहे। कालसर्प दोष कुंडली में खराब जरूर माना जाता है किन्तु विधिवत तरह से यदि इसका उपाय किया जाए तो यही कालसर्प दोष सिद्ध योग भी बन सकता है। यह कालसर्प दोष किस प्रकार से व्यक्ति को प्रभावित करता है - जब किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु और केतू ग्रहों के बीच अन्य सभी ग्रह आ जाते हैं तो कालसर्प दोष का निर्माण होता है। क्योकि कुंडली के एक घर में राहु   और दूसरे घर में केतु के बैठे होने से अन्य सभी ग्रहों से आ रहे फल रूक जाते हैं। इन दोनों ग्रहों के बीच में सभी ग्...

18 अप्रैल को हो रहा है शनि वक्री कर सकता है इन पाँच राशि वालों को प्रभावित।

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इस वर्ष 18 अप्रैल 2018 (बुधवार) को सुबह 7.10 बजे शनि धनु राशि में वक्री हो रहे हैं। शनि ग्रह की वक्र गति 6 सितंबर 2018 (गुरुवार) को सायं 05.02 बजे तक रहेगी उसके बाद धनु राशि में ही शनि वक्री से मार्गी हो जाएंगे। इस तरह कुल 142 दिन शनि वक्री रहेंगे जिसका सभी राशियों पर न्यूनाधिक असर पड़ेगा। जिन राशियों को शनि की ढैय्या अथवा साढ़े साती अथवा महादशा चल रही हैं, वो शनि की इस वक्र गति से सर्वाधिक प्रभावित होंगे। पंडित लक्ष्मीनारायण शर्मा के अनुसार शनि का वक्री होना भी कई राशियों के लिए बहुत ही शुभ रहने वाला है तो जानिए वक्री शनि किन राशियों के लिए शुभ और अशुभ रहेंगे। मेष - गोचर के अनुसार शनि के मेष राशि से नवम भाव में स्थित होने के कारण यह समय कठिन रहने वाला है। इस समय कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है लेकिन धैर्य रखें और प्रयास करते रहें, शनि की क्रूर दृष्टि के चलते आपकी प्रगति की रफ्तार धीमी रहेगी और नित नई उलझनों का सामना करना पड़ेगा। लेकिन इस वर्ष आप अपने सभी विरोधियों पर भारी पड़ेंगे और उन्हें आपके आगे हार माननी होगी। वृषभ- गोचर कुंडली के अनुसार शनि आठवें भाव में...

जानिए कब और कैसे बनाता है जेल यात्रा का योग ।

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भारतीय अखंड प्राचीन ज्योतिष विद्या   के अनुसार शनि , मंगल और राहू मुख्य रूप से यह तीन ग्रह कारावास के योग को निर्मित करने में मुख्य भूमिका निभाते है I इनके अतिरिक्त सभी लग्नों के द्वादेश , षष्ठेश एवम अष्टमेश भी इस तरह के योग बनाने में अपनी भूमिका निभाते है I इसके साथ साथ यदि महादशा , अंतर्दशा भी अशुभ ग्रहों की हो तो भी कारावास योग घटित होने के लिए उपयुक्त स्थिति बन जाती है और इस प्रकार की घटना हो सकती है, कई बार तो ऐसी स्थिति में निरपराध व्यक्ति को भी जेल जाना पड़ता है I कई बार जन्मकुंडली में ही ऐसे योग बनते है तो कई बार ग्रहों की गोचरीय स्थिति के कारण एवं दशा अंतर्दशा के कारण अल्प समय के लिए ऐसे योग बन जाते है I जन्म कुंडली में अष्टम भाव का नीचस्थ राहू अपनी महादशा एवं अंतरदशा के दौरान जातक के जीवन में अनेक संकट खड़े करता है। इस दशा में उक्त व्यक्ति झूठे आरोप, गंभीर बीमारी, दुर्घटना, कर्ज में अनिश्चित वृद्धि, अवसाद ग्रस्त हो जाता है, जिसे ज्योतिषाचार्य जेल योग कहते हैं। जन्मकुंडली में सूर्यादि ग्रह समान संख्या में लग्न एवं द्वादश , तृतीय एवं एकादश , चतुर्थ दशम , षष्ठ एवं...

जन्म पत्रिका के द्वादश भावो में राहु ग्रह का प्रभाव।

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भारतीय ज्योतिष के अनुसार राहु ग्रह को छाया ग्रह माना जाता है। राहु ग्रह व्यक्ति को अनुभ ही बल्कि व्यक्ति को शुभ फल से प्रभावित भी करता है आओ जानते हैं राहु के द्वादश भावों में शुभ - अशुभ फल को । - प्रथम भाव : दुष्ट बुद्धि , दुष्ट स्वभाव , सम्बन्धियों को ठगने वाला , मस्तक का रोगी , विवाद में विजय व रोगी होता हैं। द्वितीय भाव : कठोर कर्मी , धन नाशक , दरिद्र , भ्रमणशीला होता हैं। तृतीय भाव : शत्रुओं के ऐश्वर्य को नष्ट करने वाला , लोक में यशस्वी , कल्याण व ऐश्वर्य पाने वाला , सुख व विशाल को पाने वाला , भाईयों की मृत्यु करने वाला , पशु नाशक , दरिद्र , पराक्रमी होता हैं। चतुर्थ भाव : दुखी , पुत्र - मित्र सुख रहित , निरतंर भ्रमणशील व उदर रोगी बनाता हैं। पंचम भाव : सुखहीन , मित्रहीन , उदर - शुल रोगी , विलास में पीड़ा , भ्रमित व उदर रोगी बनाता हैं। षष्ठ भाव : शत्रु बल नाशक , द्रव्य लाभ पाने वाला , कमर में दर्द , म्लेच्छो से मित्रता व बलवान होता हेै। सप्तम भाव : स्त्री विरोधी , स्त्री नाशक , प्रचण्ड क्रोधी , स्त्री से विवाद करने वाला , रोगी स्त्री प्राप्त करता हैं...

जानिए अपनी जन्मराशि द्वारा अपना कैरियर किस दिशा में बनायें

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विश्व में प्रसिद्ध प्राचीन ज्योतिषशास्त्र विद्या द्वादश राशियों में समाहित पूरे विश्व में हर प्राणी के ऊपर अपना अद्भुत प्रभाव बनाए रखे हुए है। यही द्वादश राशियाँ मानव जीवन के जन्मराशि द्वारा हर मार्ग का चयन करती हुयी मानव प्राणी को बतलाती है कि किस राशि के जातक को कौन सा कार्य फलदायी रहेगा और कौन सा कार्य असफल रहेगा। हर जातक कि जन्मकुंडली में कुछ न कुछ योग - युति परिवर्तन रहती है और उन शुभ अशुभ योग - युतियों से वह अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत करता है और जितना लेखा जोखा लिख के धरती में आता है उसको ले कर पुनः दूसरी योनि में चले जाता है पर कुंडली में बने अशुभ योगों को शुभ में परिवर्तन कर अपने भौतिक जीवन को और भी सुखमय बनाकर व्यतीत कर सकते है बात करते है जातक कि जन्मराशि के अनुसार व्यक्ति का जीवन किस कार्य हेतु फल दायी रहेगा व किस तरह समाज में अपना प्रभुत्व बनाए रखेगा। हर व्यक्ति अछी - ख़ासी पढ़ाई - लिखाई कर के अपने केरियर को अच्छा व आगे बढ़ाने में अनेकों प्रयास करता रहता है और अपने मन में एक ही बात सोचता रहता है कि जीवन में कैसे आगे बढ़ूँ और समाज में कैसे श्रेष्ठ दिखूँ यह सारा खेल व्यक्...

जानिए क्या है भाग्य ?

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भारतीय ज्योतिष में कर्म के साथ-साथ भाग्य को भी एक सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया गया है। क्योंकि बिना भाग्य का मानव जीवन अधूरा जैसा दिखाई देता है। व्यक्ति कर्म करे पर उसका पूर्ण फल न मिले यह भाग्य का साथ न देना भी माना जाता है। मानव जीवन में हर व्यक्ति की इच्छा होती है कि वह हर प्रकार के भौतिक सुख सुविधाएँ प्राप्त करें। जब व्यक्ति की मनवांछित   भौतिक सुख सुविधाएं पूर्ण होने लगती है तो इसी स्थिति में ज्योतिषशास्त्र की भाषा में भाग्योदय कहते हैं।प्राचीन काल से ही सदैव जातक यानि व्यक्ति की अभिलाषाएं असीमित रही है। व्यक्ति अपने जीवन काल में वह सब कुछ प्राप्त कर लेना चाहता है जिसके लिए वह व्यक्ति योग्य ही न हो या जो उसकी क्षमता से बहुत ही दूर हो। अदाहरण दे कर बात करें तो जैसे   एक भिखारी अपनी तुलना किसी नगर सेठ से करना चाहे तो ऐसा कभी नहीं होगा| न ही ऐसी किसी स्थिति को भाग्योदय से जोड़ना ही चाहिए। जन्मकुंडली व्यक्ति के जीवन का पूर्णसत्य खाका माना जाता है। जन्मकुंडली में ग्रहों की स्थिति अच्छी होना परम आवश्यक है  भाग्य से संबंधित ग्रहों का शुभ होना तथा उनकी दशा-महादशा का ...

जानिए आपकी जन्मकुंडली का आपके भाग्य से क्या संबंध है।

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इस चारचर जगत में मनुष्य अपने को श्रेष्ठ बनने के लिए अनेकों कठिन से कठिन मेहनत करने में कसर नहीं छोड़ता पर भाग्य यदि कमजोर हो तो वह सारी मेहनत असफल साबित हो जाती है इस लिए कर्म के साथ भाग्य भी अपने स्थान पर एक महत्व पूर्ण स्थान बनाए रखा हुआ है। मानव जीवन के भाग्य में वृद्धि लाने के लिए अखंड ज्योतिषशास्त्र का बहुत बड़ा महत्वपूर्ण योगदान है। ज्योतिषशास्त्र एक ऐसा अद्भुत अखंड विज्ञान है। जो मानव जीवन के हर प्रकार के शुभ-अशुभ जैसे कठिन मार्गों को सरल व सफल बनाने में अपने आप में समर्थ है। बात करते हैं भाग्य का मानव जीवन में क्या योगदान है , क्या है ज्योतिषशास्त्र में भाग्य का स्थान ?- ज्योतिष शास्त्र को ऐसे समझ सकते हो कि परमात्मा हमारा हाथ पकड़कर हमे भाग्य तक नही पहुंचता बल्कि हमे सरल मार्ग का मार्ग बतलाता है। उसी तरह ज्योतिष शास्त्र आपके भाग्य वृद्धि के लिए अनेक मार्ग बुनता है और जातक को अनेक उपाय देता है   जिनकी मदद से वह व्यक्ति अपने भाग्य में वृद्धि कर सके। कालपुरुष यानि अखंड ज्योतिषशास्त्र के अनुसार व्यक्ति की जन्मकुंडली के 9 वें भाव को भाग्य भाव कहा गया है। व्यक्ति को अपने जीवन...