जानिए जन्मकुंडली के द्वारा रोगों से जुड़ी जनकारी।


पूरे विश्व पटल मे  विख्यात भारतीय अखंड ज्योतिष विध्या वर्तमान समय में हर व्यक्ति से परिचित व हृदयों में विश्वास बनाये बैठी है। भारतीय अखण्ड ज्योतिष विद्या व आयुर्वेद ये दोनों ही वेदों के मुख्य अंग हैं जहाँ आयुर्वेद रोगों के उपचार के लिए पूर्ण सक्षम है तो वहीँ दूसरी ओर ज्योतिषशास्त्र मानव जीवन में उत्पन्न होने वाले रोगों की पूर्व जानकारी देने में प्रवीण है। यदि जातक की जन्मकुंडली में रोग के कारणों की सही जानकारी होती है तो उपचार भी सही एवं सुचारु रूप से किया जा सकता है तथा रोगी व्यक्ति रोग मुक्त हो सकता हैजैसे आकाशीय वृतों में स्थित राशियों एवं नक्षत्रों का अधिकार मानव शरीर के विभिन्न अंगो पर रहता है ठीक उसी प्रकार हमारे भू-मंडल के सभी ग्रह मानव शरीर के सभी अंगो पर भी पूर्ण अधिकार बनाये रखते हैं| कालपुरुष के अनुसार द्वादश (12) राशियों को जन्मकुंडली के द्वादश (12) भाव के नाम से जाना जाता है। इन द्वादश भावों के द्वारा
मानव शरीर का निर्माण होता है। जातक की जन्मकुंडली के द्वदाश भाव में बैठे शुभ- अशुभ ग्रह व राशियों के प्रभाव के अनुसार रोग की उत्पत्ति होती है। विशेष रूप से जन्मकुंडली में छठे भाव को रोग भाव के नाम से जाना जाता है। यदि कुण्डली के छठे भाव के स्वामी का संबन्ध कुण्डली के प्रथमभाव, द्वितीय भाव अष्ठमभाव व द्वादशभाव के स्वामियों के साथ शुभ और अशुभ स्थिति में होने के कारण जातक को उन ग्रहों के महादशा,अन्तर्दशा या प्रत्यंतर दशा  के समय उन ग्रहों से जुड़े रोगों की सम्भावना बन जाती है और व्यक्ति रोग ग्रस्त हो जाता है। यदि किसी जातक की जन्मकुंडली के षष्ठ भाव में चंद्रमा और शनि के अष्टम भाव में होने के साथ ही लग्नेश के पाप ग्रह के नवांश में होने पर उस जातक को गुप्त रोग सम्बंधित बीमारियों की सम्भावना बन जाती है। यदि आप किसी भी रोग से ग्रसित या परेशान चल रहें हैं तो अपनी जन्मकुंडली के द्वारा अपने से जुड़े रोग की जानकारी प्राप्त कर उसका समाधान कर रोग मुक्त हो सकते हैं। और पुनः एक खुशहाल जीवन जी सकते हैं।


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