जाने क्या है ज्योतिष शास्त्र और कैसे करता है यह आपके जीवन को प्रभावित।

प्राचीन वैदिक काल से चली
आ रही अखंड भारतीय ज्योतिषशास्त्र विद्या पूरे विश्व भू धरोवर मे आगे बढ़ती जा रही
भारतीय अखंड वैदिक ज्योतिष विध्या वर्तमान समय में हर व्यक्ति से परिचित व हृदयों
में विश्वास बनाये बैठी है ऐसी यह अखंड ज्योतिष विद्या समुद्र की गहराइयों से भी
बढ़ कर एक मिशाल की तरह अडर-अमर है। ज्योतिष शास्त्र की गहराइयों को भली-भांति
जानना मुश्किल ही नहीं अपितु नामुनकिन है। ज्योतिष शास्त्र को सीखने से पहले इस
शास्त्र को समझना आवश्यक है। विश्व विख्यात ज्योतिषचार्य इन्दु प्रकाश जी के
सामान्य शब्दों में कहें तो ज्योतिष माने वह विद्या है जिसके द्वारा आकाश स्थित
ग्रहों, नक्षत्रों आदि की गति, परिमाप, दूरी इत्यादि का निश्चय किया जाता है। छः
प्रकार के वेदांगों में ज्योतिष मयूर
की शिखा व नाग की मणि के समान सर्वोपरी महत्व
को धारण करते हुए मूर्धन्य स्थान को प्राप्त करता है। सायणाचार्य ने ऋग्वेद भाष्य
भूमिका में लिखा है कि ज्योतिष का मुख्य प्रयोजन अनुष्ठान यज्ञ के उचित काल का
निर्धारण करना होता है | यदि ज्योतिष न हो तो मुहूर्त, तिथि, नक्षत्र,
ऋतु,
अयन आदि इन सब का मालूम नहीं होता। ज्योतिष शास्त्र उद्गमन 'ज्योतिषां सूर्यादि ग्रहाणां बोधकं शास्त्रम्' की गई है। हमें यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि ज्योतिष भाग्य या किस्मत बताने का कोई खेल-तमाशा नहीं है। यह विशुद्ध रूप से एक विज्ञान है। ज्योतिष शास्त्र वेद का एक प्रमुख अंग ( चक्षु ) है। ज्योतिष शब्द की उत्पत्ति 'द्युत दीप्तों' धातु से हुई है। इसका अर्थ, अग्नि, प्रकाश व नक्षत्र है। शब्द कल्पद्रुम के अनुसार ज्योतिर्मय सूर्यादि ग्रहों की गति, ग्रहण इत्यादि को लेकर लिखे गए वेदांग शास्त्र का नाम ही ज्योतिष है। हमारे वेदांगों में ज्योतिष शास्त्र को प्रत्यक्ष शास्त्र माना गया है | जो कि हमारे वर्तमान भूत एवं भविष्य को बतला कर एक सत्मार्ग दिखला कर उस पर चलाता है। विश्व विख्यात ज्योतिषाचार्यइन्दु प्रकाश जी द्वारा ज्योतिष शास्त्र को मनुष्य के जीवन काल का मुख्य अंग माना है जो व्यक्ति के हर मार्ग का चयन कर उसे आगे बढ्ने में प्रेरित करता है और सदमार्ग पर व्यक्ति को आगे बढ़ता है।
अयन आदि इन सब का मालूम नहीं होता। ज्योतिष शास्त्र उद्गमन 'ज्योतिषां सूर्यादि ग्रहाणां बोधकं शास्त्रम्' की गई है। हमें यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि ज्योतिष भाग्य या किस्मत बताने का कोई खेल-तमाशा नहीं है। यह विशुद्ध रूप से एक विज्ञान है। ज्योतिष शास्त्र वेद का एक प्रमुख अंग ( चक्षु ) है। ज्योतिष शब्द की उत्पत्ति 'द्युत दीप्तों' धातु से हुई है। इसका अर्थ, अग्नि, प्रकाश व नक्षत्र है। शब्द कल्पद्रुम के अनुसार ज्योतिर्मय सूर्यादि ग्रहों की गति, ग्रहण इत्यादि को लेकर लिखे गए वेदांग शास्त्र का नाम ही ज्योतिष है। हमारे वेदांगों में ज्योतिष शास्त्र को प्रत्यक्ष शास्त्र माना गया है | जो कि हमारे वर्तमान भूत एवं भविष्य को बतला कर एक सत्मार्ग दिखला कर उस पर चलाता है। विश्व विख्यात ज्योतिषाचार्यइन्दु प्रकाश जी द्वारा ज्योतिष शास्त्र को मनुष्य के जीवन काल का मुख्य अंग माना है जो व्यक्ति के हर मार्ग का चयन कर उसे आगे बढ्ने में प्रेरित करता है और सदमार्ग पर व्यक्ति को आगे बढ़ता है।
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