सत्य कि जीत में डुबो देने वाली होली पर्व का महत्वा।
अखंड भारत वर्ष में होली का त्यौहार अपनी सांस्कृतिक और
पारम्परिक मान्यताओं की वजह से प्रसिद्ध व बड़े हर्षो-उल्लास के साथ मनाया जाता है।
होली त्यौहार का उल्लेख धार्मिक व पौराणिक पवित्र पुस्तकों में प्रमाणित रूप
वर्णित मिलता है। चारों ओर बिखरता संगीत ढोल और नागाडो पर थिरकते हुये पैर रंगों
से सराबोर और रंगो से रंग देने की लगी होड मस्ती का चारो ओर वातावरण कही घुटती
भांग तो कही पकौडो की भरमार जी हाँ आज होली है। रंगो का त्यौहार होली जब आती है तो
फगुवा की बयार की तरह हरेक का मन डोल जाता है। चाहे वह वृन्दावन की होली हो चाहे
बरसाने की चाहे सम्पूर्ण भारत वर्ष में मनये जाने वाली होली पर उद्देष्य तो सबका
एक ही है रंगो के माध्यम से हृदय को रंगना गिले सिकवे दूर हो सबमें प्रेममय
वातावरण हो रंगो का त्यौहार यही तो हमे सिखाता है। अगर हम इसी प्रेम के रंग मे रंग
जाये तो न कोई छोटा न कोई बड़ा न कोई खरा न कोई खोटा छुआछूत के सभी बंधनो से उठकर
केवल प्रेम के रंग मे रंगकर सराबोर हो जाये। और यही प्रेम तो प्रहलाद सभी को बांट
रहा था। मगर हिरण्याकश्यप स्वयं को भगवान मान बैठा था इसीलिए उसका विनाश हुआ
होलिका जल गई मगर प्रहलाद बच गया। क्यों कि प्रहलाद तो सच्चिदानंद भगवान की शरण
में था। वैसे तो होली की मस्ती फागुन आते ही शुरू हो जाती है। बच्चे पिचकारियाँ
ढूढनें लगते है। युवा किसी तरह अपने भाभी को रंग मे रंगने का सपना साजोनें लगते
है। साथ ही बडे बुर्जुग होली पर बनने वाली गुझीया की महक को याद करने लगते है। आठ
दिन पूर्व वृन्दावन और वरसाने मे होली की गूंज सुनाई पडने लगती है। कही लट्ठमार
होली तो कही रंगों की होली तो कही फूलो की होली । गली के कोने पे चौराहों पर
होलिका माई के दर्शन होने शुरू हो जाते है। बाजारो में चारो ओर भांति भांति की
पिचकरियां और रंगों के अम्बार लगना शुरू हो जाते है। जी हाँ होली की मस्ती भी चारो
ओर दिखने लगती है
"रंगों से भरी इस दुनिया में रंग रंगीला त्यौहार है होली
सारे गिले शिक्वे भूल कर खुशियां मनाने का त्यौहार है होली
रंगीन दुनिया का रंगीन पैगाम है होली
हर तरफ यही धूम मची है बुरा न मानो होली है’’
होली त्यौहार का उल्लेख परम पवित्र धार्मिक ग्रन्थों में
भारत में हिंदुओं के लिए एक बहुत बड़ा त्यौहार है, जो ईसा मसीह से भी पहले कई सदियों से मौजूद है। इससे पहले होली का त्यौहार
विवाहित महिलाओं द्वारा पूर्णिमा की पूजा द्वारा उनके परिवार के अच्छे के लिये
मनाया जाता था। इस त्योहार के साथ कई पौराणिक कथाएं एवं मान्यताएं जुड़ी हुई हैं।
एक बार भगवान श्री कृष्ण अपने सांवले वर्ण के कारण हमेशा अपनी माता यशोदा से पूछते
रहते थे कि ” राधा क्यूँ
गोरी मे क्यूँ काला ” तब एक दिन
अपने लाडले कृष्ण को माता यशोदा कहती हैं कि तुम राधा को उस रंग मे रंग दो जो
तुम्हें मनभावन लगे।अपनी माता का यह सुझाव श्री कृष्ण को अति पसंद आता है और नटखट
कृष्ण अपनी राधा को मनभावक रंग से रंगने चल देते है। और इसी तरह होली के रंग उत्सव
का उदभव हुआ।इसी दिन कामदेव का पुनर्जन्म हुआ था। इन सभी खुशियों को व्यक्त करने
के लिए रंगोत्सव मनाया जाता है। सच्चिदानंद भगवान नरसिंह रूप में इसी दिन प्रकट
हुए थे और हिरण्यकश्यप नामक महासुर का वध कर भक्त प्रहलाद को दर्शन दिए थे। और
होली पर रंग उत्सव मनाए जाने के पीछे भी यह मान्यता जुड़ी है
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