जानिए ज्योतिषशास्त्र के द्वारा कैंसर जैसे घातक रोग कैसे करें दूर।



प्राचीन भारतीय अखंड ज्योतिष दर्शन में व्यक्ति के हर सुख दुख को ज्योतिष अपने अन्दर सदैव समेटे रखता है और अपने ग्रहों के अनुसार व महादशा या अंतरदशाओं से व्यक्ति को प्रभावित व शुभ-अशुभ फलदेने में सक्षम रहता है और फल को प्रदान करता है  फिर भी व्यक्ति मन में चल रहे हर भौतिक सुख को प्राप्त करना चाहता है और अपने जीवन में हर कष्टों से छुटकारा पाना चाहता है । उनमें सर्वप्रथम है निरोगी काया
निरोगी यानि हर प्रकार के रोग से रहित । निरोगी रहना व्यक्ति का प्रथम सुख माना गया है। धर्मशास्त्रों में कहा गया है की ‘‘पहला सुख निरोगी काया’’ - हाँ यह सत्य है कि निरोगी शरीर ही प्रथम सुख है और बाकी सभी सुख निरोगी शरीर पर ही निर्भर करते हैं। भाग- दौड़ के आधुनिक समय में पूर्णत: रोग से रहित रहना अधिकांश व्यक्तियों के लिये एक सपना जैसा है। मानव प्राणी दो प्रकार के रोग से ग्रस्त रहता है। पहला कारण - साध्य रोग जो कि सही उपचार, खान-पान व  व्यवहार से ठीक हो जाते हैं और दूसरा कारण - असाध्य रोग जो कि अनेकों उपचार के बाद भी जातक का पीछा नहीं छोड़ता। बात करते है ज्योतिषशास्त्र के अनुसार मनुष्य को डरा देने वाले असाध्य रोग कैंसर की।





सर्वप्रथम जानते हैं कैंसर के बारे में ? कैंसर एक घातक रोग है जो व्यक्ति की कोशिकाओं को  क्षतिग्रस्त कर शरीर में ग्रंथि का स्थान बना लेती है और शरीर में धीरे-धीरे त्रिदोष वात-पित्त-कफ प्रकट होने लगते है जिस कारण मृत्यु के समान कैंसर रोग शरीर मे अपना स्थान प्रकट कर लेती है। ऐसी बड़ी सी बड़ी बीमारियों की जानकारी देने में ज्योतिष शास्त्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ज्योतिष द्वारा निर्मित व्यक्ति की जन्म कुंडली अल्ट्रासाउंड की तरह शरीर के बाहर और अंदर दोनों की सूक्ष्म जानकारी देने में समर्थ है। शारीरिक, मानसिक और अन्य सभी रोगों की रोकथाम के लिए जन्मकुंडली में बैठे ग्रहों  की जानकारी प्राप्त कर उसके उपाय कर के लाभप्रद सिद्ध हो सकता हैं। यहां ध्यान रखने योग्य बात यह है उपाय समय रहते करने चाहिए। रोग के गंभीर होने पर उपाय अपना पूरा फल नहीं दे पाते हैं।  वैदिक ज्योतिष में राहु को कैंसर का कारक माना गया है लेकिन अन्य ग्रह भी यह रोग देते हैं। कैंसर रोग की पहचान जन्मकुंडली में बने योग और ग्रहों की दृष्टि पात तथा उच्च-नीच व शुभ-अशुभ दशाओं से भी जानकारी प्राप्त कर सकते है। ज्योतिष शास्त्र में  राहु को विष माना गया है। यदि जन्मकुंडली में छठे स्थान का स्वामी ग्रह लग्न, अष्टम या दशम भाव में बैठा हो और राहु की पूर्ण दृष्टि हो तो कैंसर जैसा रोग व्यक्ति के शरीर में होने की सम्भावना होती है। साथ ही यदि जन्मकुंडली में शनि और मंगल भी पीडि़त होने पर कैंसर जैसा घातक रोग उत्पन्न होता है तथा जन्मकुंडली के 12वें भाव में शनि-मंगल या शनि-राहु, शनि-केतु की युति हो तो जातक को कैंसर रोग से ग्रस्त करता है। और जन्मकुंडली में ऐसे अन्य योगे ऐसे भीं है जो व्यक्ति को कैंसर जैसे रोग से ग्रस्त करते है। 

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